फिर पंख लगे पहाड़ को
हर समय, हर युग में
पहाड़ कभी जड़ नहीं थे
पहाड़ कभी पत्थर नहीं थे, और
पहाड़ सिर्फ पहाड़ भी नहीं थे
चेतना के आकार थे
पहाड़ पर जब-जब बजी बांसुरी
गूंजा मधुरिम स्वर
तब-तब पहाड़ को पंख लगे
और पहाड़ उड़ने लगा।
जब-जब पहाड़ पर
युवा पक्षियों ने
विरह से आतुर हो
अपने पंख फड़फड़ाये
तब-तब पहाड़ को पंख लगे
खुले आकाश में उड़ने के लिए
और पहाड़ उड़ने लगा।
यान में बैठे राक्षस ने
जटायु पक्षी के पंख काट
उसे किया था लहू-लुहान
तभी से पक्षी खामोश नहीं बैठे हैं
नये-नये पंख लेकर भरते हैं उड़ान
किसी से भी टकरा जाने को
और, तब-तब पहाड़ को पंख लगे
और पहाड़ उड़ने लगे।
काटे होंगे किसी युग में
इन्द्र ने पर्वतों के पंख
और डर कर छिप गया होगा
मैनाक पर्वत समुद्र में
क्योंकि पहाड़ हिंसक नहीं होते
पहाड़ पर शान्ति पाने,
मुक्ति और वैराग्य पाने को
बड़े-बड़े ज्ञानी-अज्ञानी
धूनी रमाते हैं
इसीलिए पहाड़
आज भी जीवित हैं, साक्षात हैं
लाखों वर्षों से आसमान छूता है
लेकिन घमण्डी इन्द्र
कहीं भी, कहीं नहीं पूजता है।
पहाड़ की तो बात क्या
पत्थर का छोटा टुकड़ा भी
ईश्वर के रूप में घर-मंदिर में
जन-जन से पुजता है।
पहाड़ तो सदैव जीवन रक्षा करता है
कभी उसे पवन पुत्र ने उड़ाया
और कभी कृष्ण ने, अपनी उंगली
पर उठाया।
आज, फिर पंख लगे हैं पहाड़ को
और
पहाड़ उड़ने लगा है
हर समय, हर युग में
पहाड़ कभी जड़ नहीं थे
पहाड़ कभी पत्थर नहीं थे, और
पहाड़ सिर्फ पहाड़ भी नहीं थे
चेतना के आकार थे
पहाड़ पर जब-जब बजी बांसुरी
गूंजा मधुरिम स्वर
तब-तब पहाड़ को पंख लगे
और पहाड़ उड़ने लगा।
जब-जब पहाड़ पर
युवा पक्षियों ने
विरह से आतुर हो
अपने पंख फड़फड़ाये
तब-तब पहाड़ को पंख लगे
खुले आकाश में उड़ने के लिए
और पहाड़ उड़ने लगा।
यान में बैठे राक्षस ने
जटायु पक्षी के पंख काट
उसे किया था लहू-लुहान
तभी से पक्षी खामोश नहीं बैठे हैं
नये-नये पंख लेकर भरते हैं उड़ान
किसी से भी टकरा जाने को
और, तब-तब पहाड़ को पंख लगे
और पहाड़ उड़ने लगे।
काटे होंगे किसी युग में
इन्द्र ने पर्वतों के पंख
और डर कर छिप गया होगा
मैनाक पर्वत समुद्र में
क्योंकि पहाड़ हिंसक नहीं होते
पहाड़ पर शान्ति पाने,
मुक्ति और वैराग्य पाने को
बड़े-बड़े ज्ञानी-अज्ञानी
धूनी रमाते हैं
इसीलिए पहाड़
आज भी जीवित हैं, साक्षात हैं
लाखों वर्षों से आसमान छूता है
लेकिन घमण्डी इन्द्र
कहीं भी, कहीं नहीं पूजता है।
पहाड़ की तो बात क्या
पत्थर का छोटा टुकड़ा भी
ईश्वर के रूप में घर-मंदिर में
जन-जन से पुजता है।
पहाड़ तो सदैव जीवन रक्षा करता है
कभी उसे पवन पुत्र ने उड़ाया
और कभी कृष्ण ने, अपनी उंगली
पर उठाया।
आज, फिर पंख लगे हैं पहाड़ को
और
पहाड़ उड़ने लगा है
डा0 रेणु पन्त
very nice poem
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