शुक्रवार, 22 मार्च 2013

रेत का समंदर .मेरी दुबई यात्रा .......12 से 19 फरवरी ,2013 .....छठा अंतरराष्ट्रटीये हिन्दी सम्मेलन दुबई 2013





















 रेत का समंदर .मेरी दुबई यात्रा .......12 से 19 फरवरी ,2013 .....छठा अंतरराष्ट्रटीये हिन्दी सम्मेलन दुबई 2013
खरी खरी बाते

खरी - खरी बातें कहने का जी करता है,
पास नहीं है, तो मिलने का जी करता है।

परत- दर परत बँधी हुयी है जो गांठे
आंसू बनकर वह जाने का जी करता है।

अधर मौन है, व्यथा असहय है,
कागज पर ढल जाने का जी करता है।

हर महफ़िल में प्रशन बहुत है उठते
सका उत्तर बन जाने का जी करता है।

वर्षो से जो न लिख पाए चिट्ठी में,
उनके नयनों में पढने का जी करता है।

यूँ तो
सिर के ऊपर है आकाश बड़ा सा,
लेकिन उनकी छाया बनने का जी करता है।

नहीं जरुरी सम्बन्धों को नाम मिले,
सदा प्रवाहित रहने का ही जी करता है।

डॉक्टर रेणु पन्त

शुक्रवार, 15 मार्च 2013


My Book ' Phir Pankh Lage Pahad ko' was released by then Governor of Uttarakhand 
Mrs Marget Alva.

बहुत कठिन हूँ मै


बहुत कठिन हूँ मै

बहुत कठिन हूँ मै

कितना कठिन है तुम्हारे लिए
मेरे चेहरे पर मुस्कान
बनाये रखना।

मै जानती हूँ
कि तुम सदैव कोशिश करते हो
मै रूठने न पाऊ
लेकिन फिर भी
मै रूठ जाती हूँ बार बार
किसी न किसी बार पर
यह देखने के लिए
कि तुम मुझे कैसे मनाते हो,

मै जानती हूँ
मुझे तुम मना लोगे!
तुम्हारे लिए बहुत कठिन है
मुझे समझ पाना
इसलिए तुम मुझे
आघन्त पढते हो
और समझने का स्वांग भरते हो

तुम्हारी कोशिशो पर
मुझे ख़ुशी होती है।
मै तुम्हारी क्या हूँ ?
तुम्हारी मित्र
लेकिन बहुत टफ, बहुत कठिन

जब मै चीखती हूँ
चिल्लाती हूँ
तब तुम्हारी विवशता
तुम्हारे चेहरे पर झलकती है
एक निश्छल, सौम्य चेहरा
कितना उद्धिग्न हो जाता है
मेरे लिए।

तब में चाहती हूँ
तुम्हारी कठोरता
भिगो दे मुझे पूरा का पूरा
अपने अहसासों से।

तुम्हारे लिए कितना कठिन है
मुझे प्यार करना
क्योकि
मेरा मिजाज
और प्यार का मिजाज
एक जैसा है

दोनों को समझ पाना
आसान नहीं है
लेकिन में चाहती हूँ
तुम्हारा प्यार
मेरे लिए कठिन न हो

सचमुच
मै बहुत कठिन हूँ
तुम्हारे लिए भी
और ..........
                                                               Dr Renu Pant

क्योंकि


क्योंकि

अक्सर एक अंधेरे
कुएं में
बन्द पाती हू खुद को
बाहर की आवाजों को
सुन सकती हू
पर जब चिल्लाती हूँ 
तो मेरी आवाज
अन्दर ही घुट कर रह जाती है
लाख कोशिश करने पर भी
मेरी आवाज बाहर की
आवाजों से कभी
मिल ही नहीं पाती
शायद,क्योंकि
एक औरत हू मैं ।
                                  डा0 रेणु पन्त

पहाड़ बौना नहीं होता

 
पहाड़ बौना नहीं होता 

पर्वत पर
लफ्फाजी नहीं चलती
वहाँ
श्रम जीता है
वहाँ कमर झुक जाती है
दूध का वर्तन को
या कपड़ो का गट्ठर
पीठ पर लादे-लादे।
       पर पहाड़ कभी नहीं झुकता
       वह सिर्फ
       प्रेम की गर्मी पाकर
       पिघलता है।
पहाड़ कभी बौना नहीं होता
वह बौनों को भी
ऊँचाई देता है
सिर पर बिठाता है।
       पर्वत पर
       सूरज की गर्मी है
       हिम का मुकुट है
       पर सुलगते हुए सवाल है,
कुछ लोग
पहाड़ को भुनाते है
वातानुकूलित कक्षों में
संगोष्ठियों करते है
और कुछ लोग पहाड़ पर
कंक्रीट के महल खड़े कर
अर्थ ही अर्थ पाते है
      पहाड़, फिर भी पहाड़ ही रहता है
       स्वाभिमान का प्रतीक। 

                                     डॉक्टर रेणु पन्त
   

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

बलिदानों से बना राज्य

बलिदानों से बना राज्य 

बलिदानों से बना राज्य

यह राज्य बना बलिदानों से!
    विकसे संस्कृति अरमानो से!
          दुष्कर जीवन है पहाड़ का,
कंटकमय रहना है पहाड़ का!
       यहाँ चित्र उभरते कैनवास पर
             यहाँ नदियाँ गाती है गीत मधुर!
हवा सुनाती है राग अलग
     गाँवों का सौन्दर्य सजग!
         देखकर पलायन प्रतिभा का
जब राज्य बना आशा जागी
    सूरज ने भी निद्रा त्यागी!
         यह पावन धरती हिमगिरी की,
यह देव भूमि आस्थाओ की!
       यहाँ सदा नीरा नदियाँ बहती
          उत्तराँचल की सुन्दरता कहती!
गंगा यमुना का उद्गम यह,
        गंगोत्री का उल्लास यहाँ
            पर्वत जीवन का यथार्थ है यह!
यह राज्य नहीं है तीर्थस्थल
       ऋषियों मुनियों का तपस्थल है!
              दुनिया के सारे पुण्य धाम,
बद्री और केदार धाम!
       आस्था-श्रद्धा के केंद्र यहाँ,
          लगता विश्वासों का कुंभ यहाँ!
यह राज्य नहीं, है धर्म धाम,
     होते विनष्ट सब तामसी काम!
            यहाँ नंदा देवी की राजजात,
यहाँ बात बात में नयी बात!
        यहाँ वादी है यहाँ घाटी है,
         आश्रम मठ की परिपाटी है!
इसका जल पवन विशुद्ध रहे
         आचरण हमारा शुद्ध रहे
             हर दूषण और प्रदूषण से
               यह राज्य हमारा मुक्त रहे!

डॉक्टर रेणु पन्त
 

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

Prem Ki Umr


प्रेम की उम्र
तुम
चाहे कितनी भी
कोशिश कर लो
मेरे आकर्षण से
बच नहीं सकते
बार-बार छिटक
देते हो मेरा हाथ
यह कहकर
कि यह प्रेम करने की
उम्र नहीं है
पर कैसे समझाऊ तुम्हें
कि प्रेम करने की
कोई उम्र नहीं होती
यह यौवन की दहलीज
पर पैर रखते भी
फूट पडता है
और चादी होते बालों के
बीच से भी
झाकता है
तुम्हारी सारी कोशिशें
व्यर्थ जायेगी
क्योकि  कि जानती हू
कि मन ही मन
तुम मेरे
आकर्षण में बधे हो
मेरी खूबसूरत बडी-बडी  
आखों में तुम्हें
अपनी ही छवि दिखती है
मेरे भोलेपन,मेरी बातों में
तुम चाहते हुये भी
खो जाते हो
और अक्सर
सिर झटककर
सोचते हो
इस उम्र में
यह प्रेम का
अहसास सही नहीं है
पर कैसे समझाऊ, तुम्हें
कि प्रेम किसी सीमा में
बधा  नहीं होता
वह तो फूट पडता है
कहीं भी
उम्र के किसी भी पडाव पर
दुनिया के रिश्तों-नातों
की बार-बार सौगन्ध
दिलाते हो
पर जानती हूँ!
उन सभी रिश्तों से उपर
मेरी आखों से तुम्हारा
अटूट रिश्ता है
तुम्हारा  बार-बार
मुझे
 
प्रेम के विरूद्,
समझाना
पर तुम क्या जानो
तुम्हारे उन्हीं तर्कों से
मेरा-तुम्हारा
प्रेम और गहराता है
तुम जानबूझकर
मेरी आँखों में
नहीं देखते हो
क्योंकि डरते हो
कि तुम्हारी आखों में
प्रेम का जो समुद्र
मेरे लिए
हिलोरे ले रहा होता है
कहीं मै उसे देख लू
पर सब जानती हू मैं
तुम असीम प्रेम
करते हो मुझसे
और तुम्हारा ये
शिष्ट आचरण
और गम्भीर आवरण
भी तुम्हारी भावनाओं
को छिपा नही पाता

 डा0 रेणु पन्त