शुक्रवार, 22 मार्च 2013
खरी खरी बाते
खरी - खरी बातें कहने का जी करता है,
पास नहीं है, तो मिलने का जी करता है।
परत- दर परत बँधी हुयी है जो गांठे
आंसू बनकर वह जाने का जी करता है।
अधर मौन है, व्यथा असहय है,
कागज पर ढल जाने का जी करता है।
हर महफ़िल में प्रशन बहुत है उठते
सका उत्तर बन जाने का जी करता है।
वर्षो से जो न लिख पाए चिट्ठी में,
उनके नयनों में पढने का जी करता है।
यूँ तो सिर के ऊपर है आकाश बड़ा सा,
लेकिन उनकी छाया बनने का जी करता है।
नहीं जरुरी सम्बन्धों को नाम मिले,
सदा प्रवाहित रहने का ही जी करता है।
डॉक्टर रेणु पन्त
खरी - खरी बातें कहने का जी करता है,
पास नहीं है, तो मिलने का जी करता है।
परत- दर परत बँधी हुयी है जो गांठे
आंसू बनकर वह जाने का जी करता है।
अधर मौन है, व्यथा असहय है,
कागज पर ढल जाने का जी करता है।
हर महफ़िल में प्रशन बहुत है उठते
सका उत्तर बन जाने का जी करता है।
वर्षो से जो न लिख पाए चिट्ठी में,
उनके नयनों में पढने का जी करता है।
यूँ तो सिर के ऊपर है आकाश बड़ा सा,
लेकिन उनकी छाया बनने का जी करता है।
नहीं जरुरी सम्बन्धों को नाम मिले,
सदा प्रवाहित रहने का ही जी करता है।
डॉक्टर रेणु पन्त
शुक्रवार, 15 मार्च 2013
बहुत कठिन हूँ मै
बहुत कठिन हूँ मै
बहुत कठिन हूँ मै
कितना कठिन है तुम्हारे लिए
मेरे चेहरे पर मुस्कान
बनाये रखना।
मै जानती हूँ
कि तुम सदैव कोशिश करते हो
मै रूठने न पाऊ
लेकिन फिर भी
मै रूठ जाती हूँ बार बार
किसी न किसी बार पर
यह देखने के लिए
कि तुम मुझे कैसे मनाते हो,
मै जानती हूँ
मुझे तुम मना लोगे!
तुम्हारे लिए बहुत कठिन है
मुझे समझ पाना
इसलिए तुम मुझे
आघन्त पढते हो
और समझने का स्वांग भरते हो
तुम्हारी कोशिशो पर
मुझे ख़ुशी होती है।
मै तुम्हारी क्या हूँ ?
तुम्हारी मित्र
लेकिन बहुत टफ, बहुत कठिन
जब मै चीखती हूँ
चिल्लाती हूँ
तब तुम्हारी विवशता
तुम्हारे चेहरे पर झलकती है
एक निश्छल, सौम्य चेहरा
कितना उद्धिग्न हो जाता है
मेरे लिए।
तब में चाहती हूँ
तुम्हारी कठोरता
भिगो दे मुझे पूरा का पूरा
अपने अहसासों से।
तुम्हारे लिए कितना कठिन है
मुझे प्यार करना
क्योकि
मेरा मिजाज
और प्यार का मिजाज
एक जैसा है
दोनों को समझ पाना
आसान नहीं है
लेकिन में चाहती हूँ
तुम्हारा प्यार
मेरे लिए कठिन न हो
सचमुच
मै बहुत कठिन हूँ
तुम्हारे लिए भी
और ..........
Dr Renu Pant
क्योंकि
क्योंकि
अक्सर एक अंधेरे
कुएं में
बन्द पाती हू खुद को
बाहर की आवाजों को
सुन सकती हू
पर जब चिल्लाती हूँ
तो मेरी आवाज
अन्दर ही घुट कर रह जाती है
लाख कोशिश करने पर भी
मेरी आवाज बाहर की
आवाजों से कभी
मिल ही नहीं पाती
शायद,क्योंकि
एक औरत हू मैं ।
डा0 रेणु पन्त
पहाड़ बौना नहीं होता
पहाड़ बौना नहीं होता
पर्वत पर
लफ्फाजी नहीं चलती
वहाँ श्रम जीता है
वहाँ कमर झुक जाती है
दूध का वर्तन को
या कपड़ो का गट्ठर
पीठ पर लादे-लादे।
पर पहाड़ कभी नहीं झुकता
वह सिर्फ
प्रेम की गर्मी पाकर
पिघलता है।
पहाड़ कभी बौना नहीं होता
वह बौनों को भी
ऊँचाई देता है
सिर पर बिठाता है।
पर्वत पर
सूरज की गर्मी है
हिम का मुकुट है
पर सुलगते हुए सवाल है,
कुछ लोग
पहाड़ को भुनाते है
वातानुकूलित कक्षों में
संगोष्ठियों करते है
और कुछ लोग पहाड़ पर
कंक्रीट के महल खड़े कर
अर्थ ही अर्थ पाते है
पहाड़, फिर भी पहाड़ ही रहता है
स्वाभिमान का प्रतीक।
डॉक्टर रेणु पन्त
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