पहाड़ बौना नहीं होता
पर्वत पर
लफ्फाजी नहीं चलती
वहाँ श्रम जीता है
वहाँ कमर झुक जाती है
दूध का वर्तन को
या कपड़ो का गट्ठर
पीठ पर लादे-लादे।
पर पहाड़ कभी नहीं झुकता
वह सिर्फ
प्रेम की गर्मी पाकर
पिघलता है।
पहाड़ कभी बौना नहीं होता
वह बौनों को भी
ऊँचाई देता है
सिर पर बिठाता है।
पर्वत पर
सूरज की गर्मी है
हिम का मुकुट है
पर सुलगते हुए सवाल है,
कुछ लोग
पहाड़ को भुनाते है
वातानुकूलित कक्षों में
संगोष्ठियों करते है
और कुछ लोग पहाड़ पर
कंक्रीट के महल खड़े कर
अर्थ ही अर्थ पाते है
पहाड़, फिर भी पहाड़ ही रहता है
स्वाभिमान का प्रतीक।
डॉक्टर रेणु पन्त
Mountains are gift of god. So, don't misuse it. A logical approach of writer. Nice
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