शुक्रवार, 22 मार्च 2013

खरी खरी बाते

खरी - खरी बातें कहने का जी करता है,
पास नहीं है, तो मिलने का जी करता है।

परत- दर परत बँधी हुयी है जो गांठे
आंसू बनकर वह जाने का जी करता है।

अधर मौन है, व्यथा असहय है,
कागज पर ढल जाने का जी करता है।

हर महफ़िल में प्रशन बहुत है उठते
सका उत्तर बन जाने का जी करता है।

वर्षो से जो न लिख पाए चिट्ठी में,
उनके नयनों में पढने का जी करता है।

यूँ तो
सिर के ऊपर है आकाश बड़ा सा,
लेकिन उनकी छाया बनने का जी करता है।

नहीं जरुरी सम्बन्धों को नाम मिले,
सदा प्रवाहित रहने का ही जी करता है।

डॉक्टर रेणु पन्त

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