प्रेम की उम्र
तुम
चाहे कितनी भी
कोशिश कर लो
मेरे आकर्षण से
बच नहीं सकते
बार-बार छिटक
देते हो मेरा हाथ
यह कहकर
कि यह प्रेम करने की
उम्र नहीं है ।
पर कैसे समझाऊ तुम्हें
कि प्रेम करने की
कोई उम्र नहीं होती
यह यौवन की दहलीज
पर पैर रखते भी
फूट पडता है ।
और चादी होते बालों के
बीच से भी
झाकता है
तुम्हारी सारी कोशिशें
व्यर्थ जायेगी ।
क्योकि कि जानती हू
कि मन ही मन
तुम मेरे
आकर्षण में बधे हो
मेरी खूबसूरत बडी-बडी
आखों में तुम्हें
अपनी ही छवि दिखती है
मेरे भोलेपन,मेरी बातों में
तुम न चाहते हुये भी
खो जाते हो
और अक्सर
सिर झटककर
सोचते हो
इस उम्र में
यह प्रेम का
अहसास सही नहीं है
पर कैसे समझाऊ, तुम्हें
कि प्रेम किसी सीमा में
बधा नहीं होता
वह तो फूट पडता है
कहीं भी
उम्र के किसी भी पडाव पर ।
दुनिया के रिश्तों-नातों
की बार-बार सौगन्ध
दिलाते हो
पर जानती हूँ!
उन सभी रिश्तों से उपर
मेरी आखों से तुम्हारा
अटूट रिश्ता है ।
तुम्हारा बार-बार
मुझे
प्रेम के विरूद्,
समझाना
पर तुम क्या जानो
तुम्हारे उन्हीं तर्कों से
मेरा-तुम्हारा
प्रेम और गहराता है ।
तुम जानबूझकर
मेरी आँखों में
नहीं देखते हो
क्योंकि डरते हो
कि तुम्हारी आखों में
प्रेम का जो समुद्र
मेरे लिए
हिलोरे ले रहा होता है
कहीं मै उसे देख न लू ।
पर सब जानती हू मैं
तुम असीम प्रेम
करते हो मुझसे
और तुम्हारा ये
शिष्ट आचरण
और गम्भीर आवरण
भी तुम्हारी भावनाओं
को छिपा नही पाता ।
तुम
चाहे कितनी भी
कोशिश कर लो
मेरे आकर्षण से
बच नहीं सकते
बार-बार छिटक
देते हो मेरा हाथ
यह कहकर
कि यह प्रेम करने की
उम्र नहीं है ।
पर कैसे समझाऊ तुम्हें
कि प्रेम करने की
कोई उम्र नहीं होती
यह यौवन की दहलीज
पर पैर रखते भी
फूट पडता है ।
और चादी होते बालों के
बीच से भी
झाकता है
तुम्हारी सारी कोशिशें
व्यर्थ जायेगी ।
क्योकि कि जानती हू
कि मन ही मन
तुम मेरे
आकर्षण में बधे हो
मेरी खूबसूरत बडी-बडी
आखों में तुम्हें
अपनी ही छवि दिखती है
मेरे भोलेपन,मेरी बातों में
तुम न चाहते हुये भी
खो जाते हो
और अक्सर
सिर झटककर
सोचते हो
इस उम्र में
यह प्रेम का
अहसास सही नहीं है
पर कैसे समझाऊ, तुम्हें
कि प्रेम किसी सीमा में
बधा नहीं होता
वह तो फूट पडता है
कहीं भी
उम्र के किसी भी पडाव पर ।
दुनिया के रिश्तों-नातों
की बार-बार सौगन्ध
दिलाते हो
पर जानती हूँ!
उन सभी रिश्तों से उपर
मेरी आखों से तुम्हारा
अटूट रिश्ता है ।
तुम्हारा बार-बार
मुझे
प्रेम के विरूद्,
समझाना
पर तुम क्या जानो
तुम्हारे उन्हीं तर्कों से
मेरा-तुम्हारा
प्रेम और गहराता है ।
तुम जानबूझकर
मेरी आँखों में
नहीं देखते हो
क्योंकि डरते हो
कि तुम्हारी आखों में
प्रेम का जो समुद्र
मेरे लिए
हिलोरे ले रहा होता है
कहीं मै उसे देख न लू ।
पर सब जानती हू मैं
तुम असीम प्रेम
करते हो मुझसे
और तुम्हारा ये
शिष्ट आचरण
और गम्भीर आवरण
भी तुम्हारी भावनाओं
को छिपा नही पाता ।
डा0 रेणु पन्त
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