प्रेम
कैसे परिभाषित करू
कि प्रेम क्या है ?
प्रेम की अपनी होती है भाषा
उसका अपना होता है स्वभाव
प्रेम नहीं है इतना सीमित
कि उसे किसी परिभाषा की सीमा में
कैद कर दूं ।
यह वह सुगन्ध है
जो कांटो के साथ भी
आजीवन रहती है ।
प्रेम चिन्तन हैं, प्रेम मनुहार है
ईश्वर का दिया उपहार है
प्रेम बोया नहीं जाता, उगता है
कभी हॅसी में
कभी आंसुओ में ढलता है
कोई भी दूरी, कोई अन्तराल,
बदरी के समान
प्रेम के उजाले को
ढक नहीं सकता
प्रेम की परिभाषा कौन गढ सकता है ?
स्पर्श का सुख, दृष्टि का सुख
वियोग का सुख -
प्रेम की कल्पना ही
कितना कुछ दे जाती है
प्रेम बूँद है, सागर है
प्रेम दर्शन है, मनोविज्ञान है
प्रेम त्याग है, अभिलाषा है
प्रेम सृजन की आशा है
कभी खिला फूल
तो कभी तपती हुई रेत
कभी टीस तो कभी मुस्कान
प्रेम के अनगिनत आयाम हैं !
जो प्रेम को जीता है
अपने अन्दर पालता है
आँखों में स्वप्न बसाता है
पाने की बेचैनी में
अदभुत सुख पाता है
प्रेम को वही समझ पाता है ।
प्रेम शाश्वत सत्य है !
जो मृत्यु के बाद भी
शेष रह जाता है ।
कैसे परिभाषित करू
कि प्रेम क्या है ?
प्रेम की अपनी होती है भाषा
उसका अपना होता है स्वभाव
प्रेम नहीं है इतना सीमित
कि उसे किसी परिभाषा की सीमा में
कैद कर दूं ।
यह वह सुगन्ध है
जो कांटो के साथ भी
आजीवन रहती है ।
प्रेम चिन्तन हैं, प्रेम मनुहार है
ईश्वर का दिया उपहार है
प्रेम बोया नहीं जाता, उगता है
कभी हॅसी में
कभी आंसुओ में ढलता है
कोई भी दूरी, कोई अन्तराल,
बदरी के समान
प्रेम के उजाले को
ढक नहीं सकता
प्रेम की परिभाषा कौन गढ सकता है ?
स्पर्श का सुख, दृष्टि का सुख
वियोग का सुख -
प्रेम की कल्पना ही
कितना कुछ दे जाती है
प्रेम बूँद है, सागर है
प्रेम दर्शन है, मनोविज्ञान है
प्रेम त्याग है, अभिलाषा है
प्रेम सृजन की आशा है
कभी खिला फूल
तो कभी तपती हुई रेत
कभी टीस तो कभी मुस्कान
प्रेम के अनगिनत आयाम हैं !
जो प्रेम को जीता है
अपने अन्दर पालता है
आँखों में स्वप्न बसाता है
पाने की बेचैनी में
अदभुत सुख पाता है
प्रेम को वही समझ पाता है ।
प्रेम शाश्वत सत्य है !
जो मृत्यु के बाद भी
शेष रह जाता है ।
डा0 रेणु पन्त ।
really true thought about love DrS.K.Singh
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